Description
१२ सितम्बर, १८९७ को ३६ वि सिख बटालियन के कमांडर हवालदार ईशर सिंह के अधीन २१ जवानो ने असंभव कर दिखने की हिम्मत कर दिखाई। दस हज़ार से भी अधिक पठानों और अफगानियों ने बिना बटे अँगरेज़ हकूमत वाले भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमान्ती सूबे में स्तिथ सारागढ़ी की संकेत चौंकी पर धावा बोल दिया।
अगले सात घंटों तक सिख अँगरेज़ हकूमत के अधीन अपनी मातर भूमि के लिए दरड़ हिम्मत और निश्चय के साथ अंतिम सांस तक लड़ते रहे।प्रत्येक को मरने के उपरांत अँगरेज़ हकूमत की ओर से दिए जाने वाले सर्वोत्तम पुरस्कार इंडियन आर्डर ऑफ मैरिट के साथ सम्मानित किया गया।आज तक के इतिहास में सारागढ़ी के युद्ध के सिवाए कभी नहीं हुआ कि किसी दस्ते के सभी जवानों को सर्वोत्तम वीरता सम्मान के साथ पुरस्कृत किया गया हो।यह कहानी युद्ध दौरान और उसके बाद वाले दिनों के दौरान भेजे गए वास्तविक फौजी चिठ्ठी-पत्रों पर आधारित है।